बिहार में शराब माफिया और भूमि विवाद से जुड़े मामलों ने कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल के महीनों में पुलिस पर हमलों की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बढ़ते टकराव की जड़ में जनता और पुलिस के बीच घटता विश्वास है। यही वजह है कि मोतिहारी, रोहतास और गोपालगंज जैसे जिलों में पुलिसकर्मी कार्रवाई के दौरान पिटते नजर आ रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि कई मामलों में पुलिस कार्रवाई को लेकर जनता का भरोसा कमजोर हो चुका है। शराब माफिया पर छापेमारी हो या भूमि विवाद का समाधान, ग्रामीण इलाकों में पुलिस को अक्सर जनता के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है। कुछ घटनाओं में पुलिसकर्मी घायल हुए, तो कुछ जगहों पर भीड़ ने पुलिस को खदेड़ दिया।
स्थिति तब और जटिल हो जाती है जब कार्रवाई के बाद दोषी पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया जाता है। जनता के एक बड़े वर्ग का मानना है कि सस्पेंशन महज औपचारिकता है, जो असली दोषियों को बचाने और जनता के गुस्से को शांत करने का तरीका बन चुका है। यही कारण है कि लोग पुलिस पर भरोसा करने के बजाय उसके खिलाफ खड़े हो रहे हैं।
https://youtube.com/shorts/S2WWDu5IJ00? si=FJ6s4TSLIxlv4NOH
मोतिहारी में हाल ही में हुई घटना में शराब तस्करों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान पुलिस टीम पर भीड़ ने हमला कर दिया। रोहतास में भूमि विवाद सुलझाने गई पुलिस को स्थानीय लोगों ने घेरकर मारपीट की। वहीं, गोपालगंज में छापेमारी के दौरान पुलिसकर्मियों को बंधक बनाए जाने की खबर ने पूरे राज्य में हलचल मचा दी।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह की घटनाएं दो प्रमुख समस्याओं की ओर इशारा करती हैं—पहली, पुलिस की छवि और कार्यप्रणाली को लेकर जनता में अविश्वास; और दूसरी, कार्रवाई में पारदर्शिता की कमी। जब तक पुलिस अपनी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं लाएगी और जनता के साथ भरोसे का रिश्ता मजबूत नहीं करेगी, तब तक ऐसे हमले रुकना मुश्किल है।
बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद शराब माफिया के खिलाफ लगातार अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही माफिया का नेटवर्क और हिंसक होता जा रहा है। भूमि विवाद के मामलों में भी राजनीतिक दबाव, पक्षपात और भ्रष्टाचार के आरोप पुलिस की साख को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
पुलिस महकमे के भीतर भी इस बात को लेकर चिंता है कि लगातार हो रहे हमलों से जवानों का मनोबल गिर रहा है। वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि पुलिस और जनता के बीच संवाद बढ़ाने, पारदर्शी कार्रवाई और अपराधियों के खिलाफ सख्त कानूनी कदम से ही इस स्थिति को बदला जा सकता है।
बिहार पुलिस के सामने यह केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने की चुनौती नहीं है, बल्कि जनता का विश्वास जीतने की सबसे बड़ी परीक्षा भी है। अगर यह विश्वास बहाल नहीं हुआ, तो आने वाले समय में ऐसे टकराव और भी हिंसक रूप ले सकते हैं, जिसका असर पूरे राज्य की शांति और सुरक्षा पर पड़ेगा।








