बर्बादी की कगार पर बापूधाम चन्द्रहिया गांधी स्मारक: करोड़ों खर्च के बाद भी हाल बेहाल

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पूर्वी चंपारण, चन्द्रहिया।
बापूधाम चन्द्रहिया स्थित गांधी स्मारक, जिसे 11 करोड़ 25 लाख की लागत से एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया था, आज बदहाली और उपेक्षा की जीती-जागती मिसाल बन चुका है। वर्ष 2018 में शुरू हुए निर्माण कार्य को 2021 में पूरा कर 2022 में बिहार स्टेट टूरिज्म कॉर्पोरेशन लिमिटेड को सौंपा गया। लेकिन मात्र तीन वर्षों में ही यह भव्य स्मारक उपेक्षा, असुरक्षा और असामाजिक गतिविधियों का केंद्र बनकर रह गया हैl

पर्यटन स्थल से बदहाल विरासत तक

गांधी स्मारक को आकर्षक थीम पार्क के रूप में विकसित करने की योजना के तहत दो आधुनिक संग्रहालय, चरखा पार्क, कैफेटेरिया, प्याऊ केंद्र, शौचालय व दो भवनों का निर्माण किया गया था। परंतु वर्तमान में इनमें से अधिकांश सुविधाएं बर्बादी की कगार पर हैं। न केवल पर्यटक सुविधाएं अनुपलब्ध हैं, बल्कि सुरक्षा व रखरखाव का घोर अभाव भी साफ देखा जा सकता है।

अंधेरे में डूबा रहता है स्मारक परिसर

स्मारक परिसर और उसके आसपास के लगभग दो किलोमीटर क्षेत्र में स्थापित 90 प्रतिशत से अधिक स्ट्रीट लाइटें या तो तोड़ दी गई हैं या चोरी हो चुकी हैं। रात के समय यह पूरा इलाका अंधेरे में डूब जाता है, जिससे पर्यटकों के लिए यह स्थान असुरक्षित महसूस होता है। स्थानीय सुरक्षा गार्डों के अनुसार, असामाजिक तत्वों द्वारा लाइटें क्षतिग्रस्त की गईं और कई मामलों में बिजली उपकरण चोरी कर लिए गए।

साफ-सफाई और मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं

परिसर के भीतर बनाए गए अत्याधुनिक शौचालय, यूरिनल और वॉशबेसिन भी असामाजिक तत्वों की करतूतों का शिकार हो चुके हैं। इनमें लगे नल चोरी हो चुके हैं, जिससे आगंतुकों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रही हैं। जगह-जगह गंदगी, टूटी हुई टाइलें और बदबू से परिसर की गरिमा प्रभावित हो रही है।

शेड बन गए नशेड़ियों और आसमाजिको का अड्डा

पर्यटकों के लिए बनाए गए शेड अब शाम ढलते ही असामाजिक तत्वों का अड्डा बन जाते हैं। यहां खुलेआम शराब पीना, सिगरेट और अन्य मादक पदार्थों का सेवन होता है। जगह-जगह सिगरेट के टुकड़े, माचिस की तीलियां और शराब की खाली बोतलें बिखरी पड़ी रहती हैं। इससे पर्यटकों और खासकर परिवार के साथ आए लोगों को असहजता महसूस होती है।

सुरक्षा गार्डों को भी मिलती है धमकी

स्मारक पर तैनात सुरक्षा गार्ड जब इन गतिविधियों का विरोध करते हैं, तो उन्हें असामाजिक तत्वों द्वारा धमकी दी जाती है, कभी-कभी तो मारपीट की नौबत भी आ जाती है। गार्डों के अनुसार, संख्या कम होने के कारण वे हर गतिविधि पर नजर नहीं रख पाते और कई बार बेबसी झेलनी पड़ती है।

गांधीवादियों का फूटा गुस्सा

चंपारण के गांधीवादी नेताओं ने स्मारक की दुर्दशा पर गहरा क्षोभ जताया है। रंजीत गिरी, जवाहरलाल सिंह, संजय सत्यार्थी, संगीता चत्रांश, शशिकला, राज गुरु व कौशल किशोर सिंह ने इसे महात्मा गांधी के आदर्शों और मूल्यों का अपमान बताया है। उनका कहना है कि जिस धरती से गांधी जी ने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद किया, उसी धरती पर उनकी स्मृति का ऐसा अपमान दुर्भाग्यपूर्ण है।

गांधीवादी नेताओं के सुझाव

गांधीवादी नेताओं ने इस स्मारक को केवल एक पर्यटन स्थल न मानकर, इसे एक शैक्षिक और प्रेरणादायक केंद्र के रूप में विकसित करने का सुझाव दिया है। संग्रहालयों को गांधीजी के जीवन दर्शन और स्वतंत्रता संग्राम की घटनाओं से समृद्ध किया जाए, कैफेटेरिया को फिर से शुरू किया जाए और परिसर में गांधीवादी विचारों पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।

मुख्य शिकायतें:

1. 11.25 करोड़ की लागत से बना गांधी स्मारक मात्र 3 वर्षों में ही उपेक्षा का शिकार।

2. 90% स्ट्रीट लाइट टूटी या चोरी, रात में अंधेरा और असुरक्षा।

3. शौचालयों और बेसिनों के नल चोरी, साफ-सफाई की भारी कमी।

4. शेड असामाजिक तत्वों के अड्डे में तब्दील, खुलेआम नशापान।

5. सुरक्षा गार्डों पर हमला और धमकी, प्रशासन मौन

आवश्यक सुझाव:

1. टूटी स्ट्रीट लाइटों की मरम्मत व बदली तुरंत हो।

2. शौचालयों में नल पुनः लगाए जाएं और साफ-सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

3. परिसर में सुरक्षा बलों की संख्या बढ़ाई जाए और असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्रवाई हो।

4. संग्रहालयों को गांधीजी से जुड़ी प्रदर्शनी और शिक्षण सामग्री से समृद्ध किया जाए।

5. कैफेटेरिया को चालू किया जाए और आगंतुकों को बेहतर सुविधा दी जाए।

क्या बोलेते हैं दर्शक?

पर्यटन विभाग के अनुसार, गांधी स्मारक चन्द्रहिया को वर्ष 2022 में बिहार स्टेट टूरिज्म कॉर्पोरेशन लिमिटेड को सौंपा गया था। वर्तमान में परिसर की देखरेख और सुरक्षा की जिम्मेदारी कॉर्पोरेशन पर है। तीन सुरक्षा गार्ड तैनात हैं, लेकिन असामाजिक तत्वों के दबाव में सुरक्षा व्यवस्था कमजोर पड़ जाती है। विभाग का कहना है कि जल्द ही लाइटों, नलों और अन्य सुविधाओं की मरम्मत कराई जाएगी। साथ ही इसे पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर संचालित करने की संभावना भी तलाशी जा रही है।

निष्कर्ष:
गांधी स्मारक चन्द्रहिया, जिसे पर्यटन का प्रमुख केंद्र बनाने का सपना देखा गया था, आज उपेक्षा, अव्यवस्था और असुरक्षा का प्रतीक बनता जा रहा है। यदि शीघ्र सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो यह करोड़ों की लागत से बना ऐतिहासिक स्मारक पूरी तरह से बर्बादी की भेंट चढ़ सकता है। समय की मांग है कि इसे दोबारा अपने गौरव को प्राप्त कराने के लिए ठोस और प्रभावी कदम उठाए जाएं।