महाकवि जयशंकर प्रसाद की 136वीं जयंती मोतिहारी में धूमधाम से मनाई गई

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मोतिहारी: हिंदी साहित्य के महान कवि जयशंकर प्रसाद की 136वीं जयंती समारोह भव्य रूप से रविवार को टाउन हॉल, मोतिहारी में आयोजित किया गया। इस अवसर पर साहित्य प्रेमियों, कवियों और गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम में जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विरासत और उनके योगदान को याद किया गया। 

जयशंकर प्रसाद के साहित्य का प्रभाव

महाकवि जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक थे। उनकी कविताओं, नाटकों और कहानियों ने भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है। समारोह में उनकी कालजयी रचनाओं जैसे कामायनी, आँसू, लहर और झरना पर विचार-विमर्श हुआ। वक्ताओं ने बताया कि जयशंकर प्रसाद ने भारतीय समाज की संवेदनाओं और राष्ट्रीय चेतना को साहित्य में अद्भुत रूप से अभिव्यक्त किया।

मुख्य अतिथियों की उपस्थिति  

इस कार्यक्रम में कई प्रमुख गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए, जिनमें विनोद गुप्ता, मुखिया अशोक गुप्ता, राकेश कुमार, मणिकुंडल गुप्ता, सपंच साधोलाल साह, दिलीप गुप्ता, चंदन गुप्ता, रमाकांत राकेश, कवि गोपाल भारती, और मुखिया प्रेरणा कुमारी उपस्थित रहे। वक्ताओं ने जयशंकर प्रसाद की रचनाओं को नई पीढ़ी तक पहुँचाने की आवश्यकता पर बल दिया। 

साहित्यिक कार्यक्रम और वक्तव्य

कवि गोपाल भारती ने कहा कि जयशंकर प्रसाद की कविताएँ समाज को एक नई दिशा देने वाली हैं और आज के समय में भी उनकी प्रासंगिकता बनी हुई है। वक्ताओं ने उनके साहित्य को स्कूल-कॉलेजों में अधिक प्रचारित करने की मांग की।

मुखिया प्रेरणा कुमारी ने कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से समाज को अपनी साहित्यिक विरासत से जुड़ने का अवसर मिलता है। वहीं, जितेंद्र गुप्ता ने इस अवसर पर आगामी 13 अप्रैल को पटना के मिलर हाई स्कूल में आयोजित होने वाले बंशी चाचा के शहादत दिवस के कार्यक्रम की जानकारी दी और सभी से इसमें एकजुट होकर भाग लेने की अपील की।

संस्कृतिक कार्यक्रम और सम्मान समारोह 

कार्यक्रम के दौरान कई सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ भी हुईं। कवियों ने जयशंकर प्रसाद की कविताओं का पाठ किया और उनके साहित्य से प्रेरित रचनाएँ प्रस्तुत कीं। अंत में विशिष्ट अतिथियों को सम्मानित किया गया और समाज में साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए संकल्प लिया गया।

इस भव्य आयोजन ने मोतिहारी में साहित्यिक चेतना को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया और जयशंकर प्रसाद की स्मृतियों को सजीव किया।