मोतिहारी। संविधान दिवस के अवसर पर महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। गोष्ठी का मुख्य उद्देश्य भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों, उसकी प्रासंगिकता और समय के साथ आवश्यक होने वाले परिवर्तनों पर विमर्श करना था।
संविधान: दुनिया के सबसे मजबूत लोकतांत्रिक दस्तावेजों में शामिल
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने की। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि भारत का संविधान अन्य देशों की अपेक्षा अत्यंत मजबूत, विस्तृत और समय के अनुसार ढलने की क्षमता रखने वाला दस्तावेज है। उन्होंने कहा कि संविधान न केवल देश की एकता, अखंडता और लोकतांत्रिक ढांचे की रक्षा करता है, बल्कि नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति भी जागरूक करता है।
कुलपति ने कहा, “हमारा संविधान दुनिया के सबसे प्रासंगिक और सर्वांगीण लोकतांत्रिक दस्तावेजों में गिना जाता है। इसकी एक खूबी यह है कि यह समय और परिस्थितियों के अनुसार खुद को अपडेट करता रहता है। इसलिए संशोधन होना संविधान की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी ताकत है।”
समय, समाज और आवश्यकता के अनुसार होते रहे हैं बदलाव
प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि जब संविधान का निर्माण हुआ था, तब सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी परिस्थितियां बिल्कुल अलग थीं। स्वतंत्र भारत की प्रारंभिक चुनौतियाँ आज की समयानुकूल चुनौतियों से भिन्न थीं। इसलिए जैसे-जैसे समाज और तकनीक में बदलाव होता गया, वैसे-वैसे संविधान में भी सुधार और संशोधन किए जाते रहे।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि शुरुआती दौर में सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार या पंचायतों में आरक्षण जैसे कई विषय प्रासंगिक ही नहीं थे, लेकिन समय की मांग के अनुरूप इन्हें संविधान में जोड़ा गया। यही संविधान की जीवंतता का प्रतीक है।
संविधान को समझना और आत्मसात करना जरूरी: वक्ताओं की राय
गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि संविधान सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज नहीं, बल्कि देश की आत्मा है। इसे केवल पढ़ना ही नहीं, बल्कि इसके मूल्यों को व्यवहार में उतारना भी आवश्यक है।
वक्ताओं ने विद्यार्थियों को संविधान के प्रावधानों, मूल अधिकारों, मूल कर्तव्यों और लोकतांत्रिक मूल्यों की गहराई से समझ विकसित करने की सलाह दी।
एक अन्य वक्ता ने कहा कि आज की युवा पीढ़ी को संविधान की भावना और सिद्धांतों को जीवन में लागू कर राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
कार्यक्रम में छात्रों ने किया सक्रिय भागीदारी
गोष्ठी में उपस्थित छात्रों ने भी सवाल पूछकर और अपने विचार साझा कर कार्यक्रम को समृद्ध बनाया। कई शोधार्थियों ने संविधान में हुए महत्वपूर्ण संशोधनों, न्यायपालिका की भूमिका, लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और नागरिक अधिकारों पर शोध आधारित प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान विभाग द्वारा किया गया।
संविधान दिवस के महत्व पर विशेष जोर
अंत में वक्ताओं ने कहा कि संविधान दिवस केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि यह वह दिन है जो नागरिकों को अपनी लोकतांत्रिक जिम्मेदारियों, अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाता है।
कुलपति ने सभी से अपील की कि वे संविधान की मूल भावना—न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व—को हर क्षेत्र में लागू करने का संकल्प लें।
–महत्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित यह गोष्ठी संविधान की मजबूती, उसकी अनुकूलन क्षमता और बदलते समय में उसकी प्रासंगिकता पर गहन और सार्थक चर्चा का मंच बनी।









