विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस: निर्भीक कलम की आज़ादी का उत्सव

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तीन मई पत्रकारिता के अधिकारों का वैश्विक पर्व

आज जब हम तीन मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मना रहे हैं, तो यह दिन उन सभी पत्रकारों, रिपोर्टरों और मीडिया कर्मियों को समर्पित है, जो तमाम चुनौतियों के बावजूद समाज को सत्य का आईना दिखाने का साहस रखते हैं। प्रेस की स्वतंत्रता न केवल किसी लोकतंत्र की नींव होती है, बल्कि यह समाज के हर नागरिक के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी विस्तार है।

भारत में प्रेस स्वतंत्रता की संवैधानिक स्थिति

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, जो प्रेस की स्वतंत्रता की मूल आत्मा है। यद्यपि भारत में प्रेस की स्वतंत्रता के लिए कोई विशेष कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन यह स्वतंत्रता संविधान के अंतर्गत सुरक्षित मानी जाती है। यही कारण है कि भारतीय पत्रकार अनेक बार सरकारों के विरुद्ध भी आवाज़ उठाने का साहस करते हैं और जनता के सवालों को सामने लाते हैं।

विश्व स्तर पर प्रेस स्वतंत्रता की शुरुआत

1991 में यूनिस्को और संयुक्त राष्ट्र संघ के जन सूचना विभाग ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। इसके तहत पहली बार 3 मई 1993 को यह दिवस मनाया गया। इस तारीख को चुनने के पीछे एक ऐतिहासिक कारण है – 3 मई 1991 को विंडहोक घोषणा को अपनाया गया था, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति के अधिकार और स्वतंत्र पत्रकारिता की जरूरत को मान्यता दी गई।

आज की चुनौतियाँ और पत्रकारिता की भूमिका

21वीं सदी में पत्रकारिता का स्वरूप तेजी से बदला है। डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के दौर में सूचनाएँ बिजली की गति से फैलती हैं, लेकिन इसी के साथ फेक न्यूज़, ट्रोलिंग और सेंसरशिप जैसी समस्याएँ भी बढ़ी हैं। भारत में कई पत्रकारों को जान का खतरा उठाकर रिपोर्टिंग करनी पड़ती है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) की प्रेस स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग हाल के वर्षों में चिंता का विषय रही है।

पत्रकारसमाज का प्रहरी

पत्रकारों को समाज का चौथा स्तंभ कहा जाता है। वे वही लोग हैं जो सत्ता से सवाल करते हैं, जनमानस की आवाज़ बनते हैं और उन मुद्दों को सामने लाते हैं जिन पर अक्सर चुप्पी छाई रहती है। चाहे वो भ्रष्टाचार का मामला हो या किसानों की पीड़ा, महिला सुरक्षा का सवाल हो या पर्यावरण की चिंता – पत्रकार हर मोर्चे पर डटे रहते हैं।

प्रेस की आज़ादी – लोकतंत्र की पहचान

किसी भी देश की प्रेस की स्वतंत्रता यह तय करती है कि वहाँ लोकतंत्र कितना सशक्त है। यदि पत्रकार स्वतंत्र हैं, तो जनता भी स्वतंत्र रूप से अपनी बात कह सकती है। लेकिन यदि पत्रकारों को डराया-धमकाया जाए, उनके खिलाफ झूठे मुकदमे चलाए जाएं या उनके ऊपर हमले हों, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

डिजिटल मीडिया की भूमिका और नई दिशा

न्यूज़ पोर्टल और डिजिटल पत्रकारिता ने आम आदमी को सीधे जोड़ने का कार्य किया है। अब खबरें केवल अख़बारों और टीवी तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि मोबाइल की स्क्रीन पर हर सेकंड नई जानकारी उपलब्ध हो रही है। इस नए युग में पत्रकारों की ज़िम्मेदारी और भी बढ़ गई है – उन्हें न केवल सच्चाई दिखानी है बल्कि सूचनाओं की प्रमाणिकता भी सुनिश्चित करनी है।

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस – केवल उत्सव नहीं, एक संकल्प

तीन मई केवल जश्न का दिन नहीं, बल्कि पत्रकारों के अधिकारों और उनके संरक्षण का संकल्प लेने का दिन है। सरकारों को चाहिए कि वे मीडिया को सुरक्षा दें, पत्रकारों को कानूनी और सामाजिक समर्थन मिले, और मीडिया संस्थानों को बिना डर के काम करने दिया जाए।

निष्कर्ष

आज के दिन हम सभी को यह समझने की ज़रूरत है कि प्रेस की आज़ादी केवल पत्रकारों की ज़रूरत नहीं, बल्कि पूरे समाज की ज़रूरत है। निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता ही एक प्रगतिशील राष्ट्र की पहचान होती है। आइए, इस विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर हम सभी उन कलम के सिपाहियों को नमन करें, जो सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं और लोकतंत्र की लौ को जलाए रखे हुए हैं।