मोतिहारी: एक ओर जहाँ देशभर में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को लेकर सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। इसका ताज़ा उदाहरण पूर्वी चंपारण जिले के मोतिहारी सदर अस्पताल में देखने को मिल रहा है, जहाँ शौचालयों की बदहाल स्थिति ने न सिर्फ अस्पताल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि मरीजों और उनके परिजनों को भारी मुश्किल में भी डाल रखा है।
शौचालय में नहीं पानी, गंदगी से अटा पड़ा परिसर
सदर अस्पताल, जो जिले का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, वहां शौचालयों की हालत इतनी खराब है कि वहां जाने से लोग कतराने लगे हैं। शौचालय में न तो पानी की व्यवस्था है, न ही नियमित सफाई होती है। परिणामस्वरूप, गंदगी का अम्बार लग गया है और टॉयलेट्स से दुर्गंध इतनी भयानक है कि मरीजों को अपनी नाक ढक कर बाहर खड़ा रहना पड़ता है।
एक मरीज के परिजन का कहना है, “यहाँ इलाज कराने आए हैं लेकिन शौचालय की हालत देखकर डर लगने लगता है। पानी नहीं है, कोई सफाईकर्मी भी नहीं दिखता। महिलाएं और बुजुर्ग तो बाहर मैदान में जाने को मजबूर हैं। ये बहुत ही शर्मनाक स्थिति है।”
यत्र-तत्र शौच करने को मजबूर लोग
शौचालयों में पानी नहीं होने के कारण मरीज और उनके परिजन आसपास के खुले इलाकों में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं। इससे न केवल अस्पताल की स्वच्छता व्यवस्था ध्वस्त हो रही है, बल्कि संक्रमण और बीमारियों का खतरा भी बढ़ गया है।
कुछ लोगों ने बताया कि अस्पताल में भर्ती मरीजों को जब भी शौच की आवश्यकता होती है, तो परिजनों को दूर-दराज से पानी लाकर देना पड़ता है। कई बार तो यह पानी भी उपलब्ध नहीं हो पाता, ऐसे में लोग मजबूरी में खुले में या अस्पताल परिसर के कोनों में शौच करने लगते हैं।
स्वच्छता कर्मी नदारद, जिम्मेदार कौन?
स्थानीय लोगों और अस्पताल में आने वाले मरीजों का आरोप है कि सफाईकर्मियों की उपस्थिति बेहद कम है। सुबह और शाम के निर्धारित समय पर भी सफाई होती दिखाई नहीं देती। यह सब तब हो रहा है जब सरकार की ओर से अस्पतालों को नियमित सफाई के लिए बजट भी आवंटित किया गया है।
अस्पताल प्रबंधन की तरफ से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पा रहा है। अस्पताल के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “पानी की टंकी कई दिनों से खराब है, इसकी शिकायत ऊपर तक की गई है, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई। सफाईकर्मी भी अपनी मनमर्जी से आते हैं, कोई निगरानी नहीं है।”
महिलाओं और बुजुर्गों के लिए सबसे बड़ी समस्या
शौचालय की बदहाली से सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं और बुजुर्गों को हो रही है। महिलाएं सुरक्षा और निजता के चलते खुले में भी नहीं जा पातीं और मजबूरी में पूरे दिन शौच रोक कर रखने को मजबूर होती हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
एक महिला मरीज ने कहा, “डॉक्टर इलाज तो कर रहे हैं, लेकिन जब तक आधारभूत सुविधाएं नहीं होंगी, तब तक पूरा इलाज अधूरा ही रहेगा। हम महिलाएं न तो खुले में जा सकती हैं, न ही अंदर वाले टॉयलेट में जा सकते हैं – वहाँ इतनी गंदगी है कि अंदर घुसना भी मुश्किल है।”
प्रशासन कब जागेगा?
सवाल ये है कि क्या अस्पताल प्रशासन, नगर निगम और जिला स्वास्थ्य विभाग इस गंभीर समस्या पर ध्यान देगा? क्या ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का असली लाभ इन संस्थानों तक पहुंचेगा, या फिर ये अभियान केवल विज्ञापनों और सरकारी रिपोर्टों तक सीमित रह जाएगा?
स्थानीय सामाजिक संगठनों ने इस मुद्दे को लेकर आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। ‘जन स्वास्थ्य जागरूकता मंच’ के संयोजक ने कहा, “हम जल्द ही इस विषय पर जिला कलेक्टर से मिलेंगे और ज्ञापन सौंपेंगे। अस्पताल में गंदगी और पानी की कमी से मरीजों की हालत और खराब हो रही है, यह एक आपात स्थिति है।”
निष्कर्ष
मोतिहारी सदर अस्पताल की यह स्थिति साफ बताती है कि सरकारी योजनाओं और धरातल की सच्चाई में अब भी लंबा फासला है। शौचालय जैसी मूलभूत सुविधा की दुर्दशा केवल स्वच्छता के अभाव को ही नहीं दर्शाती, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही की पोल भी खोलती है। अब देखना यह होगा कि जिम्मेदार अधिकारी इस ओर कब संज्ञान लेते हैं और कब तक मरीजों को इस गंदगी और परेशानी से निजात मिलती है।