26/11- अभी भी धधकता घाव
26/11- अभी भी धधकता घाव संजय मिश्रा के कलम से
26 नवंबर की शाम जब लोग अपने रोजमर्रा के कामों से घर लौट रहे थे, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि कुछ ही घंटों में शहर की सड़क पर गोलियों की बौछार होगी, बम धमाकों से इमारतें कापेंगी और मासूम जिंदगियां बेसहारा हो जाएंगी। ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और कैफे लियोपोल्ड- हर जगह खून का सैलाब बहा। देश ने अपनी आंखों के सामने अपने को खोते देखा।
तुकाराम ओंबले ने तो अपनी जान की आहुति देकर अजमल कसाब को जीवित पकड़ा , जिसके जरिए इस पूरी साजिश का भांडा फूटा। उनकी वीरता इस देश के कण – कण में बसी हुई है ।आज भी जब उनके परिवार वालों की आंखों में हम गर्व और पीड़ा साथ-साथ देखते हैं, तो हमारा सिर खुद – ब – खुद श्रद्धा से झुक जाता है। 26 /11 सिर्फ एक तारीख नहीं है ,यह एक ऐसा घाव है जो हर साल नवंबर आते ही हरा हो जाता है। वे अनगिनत परिवार जो उस दिन अपनों को खो बैठे, वे आज भी उसी दुख के साथ जी रहे हैं।उनके लिए हर दिन एक नई लड़ाई है- यादों से लड़ने की, अकेलेपन से जूझने की।

