26/11- अभी भी धधकता घाव

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26/11- अभी भी धधकता घाव           संजय मिश्रा के कलम से
कभी-कभी कुछ घटनाएं इतिहास के पन्नों पर केवल दर्ज नहीं होती, बल्कि वे पूरी पीढ़ी के मन पर गहरी छाप छोड़ती है। 26 नवंबर 2008 की रात ऐसी ही एक घटना थी। उस रात न केवल मुंबई की सड़कों पर आतंक का नंगा नृत्य हुआ था, बल्कि पूरे भारत के दिल में एक ज़ख्म बन गया था, जो आज भी टीसता है। पन्द्रह साल से ज्यादा वक्त बीत गया, लेकिन उस भयानक रात की यादें आज भी धुंधली नहीं हुई। आतंकवादियों ने न सिर्फ गोलियों से निर्दोषों की जान ली बल्कि भरोसे, सुरक्षा और सामान्य जीवन के सपनों को भी तार _तार कर दिया था। मुंबई, जो सपनों का शहर कहलाता है, उस दिन मातम का शहर बन गया था।

26 नवंबर की शाम जब लोग अपने रोजमर्रा के कामों से घर लौट रहे थे, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि कुछ ही घंटों में शहर की सड़क पर गोलियों की बौछार होगी, बम धमाकों से इमारतें कापेंगी और मासूम जिंदगियां बेसहारा हो जाएंगी। ताज होटल, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और कैफे लियोपोल्ड- हर जगह खून का सैलाब बहा। देश ने अपनी आंखों के सामने अपने को खोते देखा।

टीवी स्क्रीन पर जो दृश्य दिख रहे थे, वह किसी हॉलीवुड फिल्म के नहीं थे, बल्कि हमारे अपने घरों के सच थे । आतंकियों का लक्ष्य साफ था- भारत की आत्मा को लहूलुहान करना। लेकिन उन्होंने यह नहीं समझा कि भारत टूटने वाला देश नहीं है।इस भीषण हमले के बीच कुछ ऐसे चेहरे उभरे जिन्होंने हमें उम्मीद दी, हमें दिखाया कि भारत का साहस अमिट है। शहीद हेमंत करकरे, विजय सालस्कर, अशोक कामटे, तुकाराम ओंबले- ये वो नाम है जिन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर ना जाने कितनी जिंदगियों को बचाया।

तुकाराम ओंबले ने तो अपनी जान की आहुति देकर अजमल कसाब को जीवित पकड़ा , जिसके जरिए इस पूरी साजिश का भांडा फूटा। उनकी वीरता इस देश के कण – कण में बसी हुई है ।आज भी जब उनके परिवार वालों की आंखों में हम गर्व और पीड़ा साथ-साथ देखते हैं, तो हमारा सिर खुद – ब – खुद श्रद्धा से झुक जाता है। 26 /11 सिर्फ एक तारीख नहीं है ,यह एक ऐसा घाव है जो हर साल नवंबर आते ही हरा हो जाता है। वे अनगिनत परिवार जो उस दिन अपनों को खो बैठे, वे आज भी उसी दुख के साथ जी रहे हैं।उनके लिए हर दिन एक नई लड़ाई है- यादों से लड़ने की, अकेलेपन से जूझने की।
समाज ने भले ही धीरे-धीरे अपनी गति पकड़ ली हो ,लेकिन जिनके घर उजड़े थे, उनके लिए वक्त कभी थमा ही नहीं। वे आज भी उसी रात में अटके हुए हैं। अजमल कसाब को पकड़कर मुकदमा चलाया गया और उसे फांसी दी गई ।परंतु जो चेहरे इस पूरी साजिश के पीछे थे- जो पर्दे के पीछे से नफ़रत की आग भड़का रहे थे- उन तक पहुंचना अब भी अधूरा काम है। हाफिज सईद, जकीउर रहमान लखवी जैसे मास्टरमाइंड आज भी हमारे घाव पर नमक छिड़कते घूम रहे हैं ।अब जब तहव्वुर राणा भारत लाया गया है, यह अवसर है कि हम उस न्याय की राह पर फिर एक मजबूत कदम बढ़ाए। तहव्वुर राणा पर लगे आरोप कोई साधारण अपराध नहीं है। वह 26/11 के मासूमों की मौत का बड़ा साजिशकर्ता है ।उसे कानून के कटघरे में लाकर सख़्त से सख़्त सजा देना न केवल न्याय का सवाल है, बल्कि करोड़ों भारतीयों के आत्मसम्मान का भी प्रश्न है। भारत को यह दिखाना होगा कि भले ही वक्त बीत जाए, पर कोई अपराधी हमारी स्मृति से बच नहीं सकता है।26/11 ने हमें कई सबक सिखाएं। हमने महसूस किया कि हमारी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में कितनी बड़ी चूक थी। इस हमले के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड(NSG)की तैयारियों को दुरुस्त किया गया, समुद्री सीमाओं पर निगरानी बढ़ाई गई और खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में सुधार किया गया ।लेकिन क्या हम कह सकते हैं कि हम पूरी तरह सुरक्षित है? आज भी हमें खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या हमारे तंत्र पूरी तरह चौकस है? क्या हमारी सीमाएं अभेद्य है ? क्या हर नागरिक अपने आसपास संदिग्ध गतिविधियों को देखकर सतर्कता बरत रहा है? 26/11 सिर्फ सरकारों की ज़िम्मेदारी नहीं थी बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी थी – कि जागरूक नागरिक ही सबसे मजबूत सुरक्षा दीवार होते हैं।
जिस दिन आतंकियों ने हमें बांटने की कोशिश की थी, उस दिन मुंबई ने और भारत ने दिखा दिया था कि हम एक हैं। धर्म, भाषा, जाति से ऊपर उठकर पूरा देश एक धड़कन बन गया था। जिस तरह टैक्सी ड्राइवर, होटल कर्मचारियों, आम नागरिकों ने जान जोखिम में डालकर दूसरों की मदद की – वह बताता है कि भारत का दिल कितना बड़ा है। आज जब दुनिया के कई हिस्सों में नफरत की दीवारें खड़ी हो रही है, भारत को अपने उसी जज़्बे को बचा कर रखना है ।हमें हर उस कोशिश को नाकाम करना है जो हमें बांटने आए। 26/11 का घाव धधकता रहेगा । यह घाव हमें याद दिलाता रहेगा की आजादी, सुरक्षा और शांति की कीमत बहुत भारी होती है। यह घाव हमें प्रेरणा देता रहेगा कि हम अपने देश को इतना मजबूत बनाएं की कोई भी नापाक ताकत इसकी ओर आंख उठाकर भी न देख सके। आज जब तहव्वुर राणा भारत पहुंच चुका है, तो यह केवल एक अभियुक्त की वापसी नहीं है – यह उन अनगिनत ज़ख्मों के हिसाब का वक्त है जो 26/11 की रात हमारे दिलों पर खींचे गए थे। भारत को चाहिए कि वह पूरी शक्ति और संकल्प के साथ इस लड़ाई को लड़े। सिर्फ अदालत में नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी ।दुनिया को दिखाना होगा कि भारत ना तो भूला है ,ना भूलेगा। और जब भारत न्याय मांगता है तो उसे पूरा करके ही रहता है।26/11 हमारा गुस्सा नहीं, हमारा संकल्प है। यह धधकता घाव हमें बार-बार याद दिलाता है कि आजादी की रक्षा के लिए हमें हमेशा तैयार रहना है ।हमें नफरत के अंधेरे को अपनी एकता की रोशनी से हर बार पराजित करना है।