आचार्य नीरज मिश्रा
हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी व्रत मनाया जाता है,।मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत से व्रती मोह माया से ऊपर उठ जाता है ।और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वस्तुतः इस वर्ष 1 मई सोमवार को हैं, मोहिनी एकादशी व्रत पड़ रहा है।उक्त बातें आयुष्मान ज्योतिष परामर्श सेवा केन्द्र के संस्थापक साहित्याचार्य ज्योतिर्विद आचार्य चन्दन तिवारी ने बताया कि उन्होंने बताया कि मोहिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
● इसके पश्चात कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
● दिन में मोहिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें अथवा सुनें।
● रात्रि के समय श्री हरि का स्मरण करें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें।
● द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का कुश के जल से पारण करें।
● सर्वप्रथम भगवान की पूजा कर ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद को भोजनादि कराएं, और उन्हें दान दक्षिणा देें।
● इसके पश्चात ही स्वयं भोजन ग्रहण करें।

वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था। भगवान विष्णु ने सुमुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए अमृत को देवताओं में वितरीत करने के लिये मोहिनी का रूप धारण किया था।
कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो अमृत प्राप्ति के बाद देवताओं व असुरों में आपाधापी मच गई थी।
चूंकि ताकत के बल पर देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे ।इसलिये चालाकि से भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर असुरों को अपने मोहपाश में बांध लिया और सारे अमृत का पान देवताओं को करवा दिया जिससे देवताओं ने अमरत्व प्राप्त किया।
वैशाख शुक्ल एकादशी के दिन ही चूंकि यह सारा घटनाक्रम हुआ, इस कारण इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा गया।ये भी मान्यता है कि माता सीता के विरह से पीड़ित भगवान श्री राम ने, और महाभारत काल में युद्धिष्ठिर ने भी अपने दु:खों से छुटकारा पाने के लिये इस एकादशी का व्रत विधि विधान से किया था।मोहिनी एकादशी की व्रत कथा— इस प्रकार है।
कहते हैं किसी समय में भद्रावती नामक एक बहुत ही सुंदर नगर हुआ करता था ।जहां धृतिमान नामक राजा राज किया करते थे।राजा बहुत ही पुण्यात्मा थे।
उनके राज में प्रजा भी धार्मिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेती।इसी नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य भी रहता था।धनपाल भगवान विष्णु के परम भक्त और एक पुण्यकारी सेठ था।भगवान विष्णु की कृपा से ही इनकी पांच संतान थी।इनके सबसे छोटे पुत्र का नाम था,। धृष्टबुद्धि।उसका यह नाम उसके धृष्टकर्मों के कारण ही पड़ा।बाकि चार पुत्र पिता की तरह बहुत ही नेक थे।
लेकिन धृष्टबुद्धि ने कोई ऐसा पाप कर्म नहीं छोड़ा जो उसने न किया हो।तंग आकर पिता ने उसे बेदखल कर दिया। भाईयों ने भी ऐसे पापी भाई से नाता तोड़ लिया।
जो धृष्टबुद्धि पिता व भाइयों की मेहनत पर ऐश करता था।अब वह दर-दर की ठोकरें खाने लगा।ऐशो आराम तो दूर खाने के लाले पड़ गये। किसी पूर्वजन्म के पुण्यकर्म ही होंगे कि वह भटकते-भटकते कौण्डिल्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया।वहाँ पर जाकर महर्षि के चरणों में गिर पड़ा।पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए, वह कुछ-कुछ पवित्र भी होने लगा था।महर्षि को अपनी पूरी व्यथा बताई और पश्चाताप का उपाय जानना चाहा।उस समय ऋषि मुनि शरणागत का मार्गदर्शन अवश्य किया करते और पातक को भी मोक्ष प्राप्ति के उपाय बता दिया करते।ऋषि ने कहा कि वैशाख शुक्ल की एकादशी बहुत ही पुण्य फलदायी होती है। इसका उपवास करो तुम्हें मुक्ति मिल जायेगी।धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बताई विधिनुसार वैशाख शुक्ल एकादशी यानि मोहिनी एकादशी का उपवास किया।इसके बाद उसे पापकर्मों से छुटकारा मिला और मोक्ष की प्राप्ति हुई।








