वैशाख संक्रांति 14अप्रैल को सतुआन

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रामगढ़ावा Republic 7 भारत  लक्ष्मी नारायण महायज्ञ सिसवनिया रामगढ़ावा में हुई बैठक  प्रकृति से एकात्मक का पर्व 14अप्रैल को सतुआन *सूर्य के मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करने पर यज्ञ पर्व मनाया जाता है–आचार्य धनंजय शास्त्री ने कहा कि मेष के सूर्य में दान विशेष – जो मनुष्य देवो तथा पितरों के उद्देश्य से सत्तू तथा जलपूर्ण घट का दान करता है

उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं भारतीय जीवन में प्रकृति उत्सव और समाज की एकात्मकता का अद्भभुत संयोजन है। इस संशोधन के साथ हमारा सामाजिक जीवन सालों भर सतत् गतिमान रहता है।

श्याम शंकर जी महाराज ने बल दिया कि यहां सर्वत्र प्रकृति संस्कृति और सृष्टि संघ अनुष्ठानों की महत्ता होती है ।सालों भर चलने वाले उत्सव लोक चेतना के रंग और रस है। यहां परंपराओं के संग पूजा का महत्व है। प्रकृति और परमात्मा से जुडाव का यह देश है। इसमें हम सौभाग्य और कामना पूर्ति के लिए सहज भाव से पूजा आराधना करते हैं।

प्रत्येक साल वैसाख सक्रांति को यानी अप्रैल के 14 या 15 मई तिथि को सतुआन का पर्व मनाया जाता है। सतुआन हमारे स्वस्थ जीवन का एक सांस्तिक संकेत है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से नेपाल की तराई क्षेत्र में इस उत्सव की बेहद धूम होती है। बिहार और नेपाल के मैथिली भाषा क्षेत्र में जुड़ शीतल तो शेष जगह सतुआन नाम से प्रचलित है। इससे जुड़ शीतल ,टटका बासी, सतुआ संक्रांति,बिसुआ आदि से भी जाना जाता है।

लोक संस्कृति में यह प्रकृति से जुडाव का पर्व है। आज से कुछ दशक पूर्व सतु को गठरी में बांधकर लंबी यात्रा पर ले जाया जाता था ।देहातों में अभी भी यह परंपरा जीवित है। शहर में सत्तू भले भूल गए लेकिन लिट्टी अभी स्मरण है। राकेश पाण्डेय ने कहा सतुआन के दिन आम की बैरिया (चटनी) और साथ में सतु को घोलकर पहले सूर्य देव को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।

अरविंद दुवे ने कहा सत्तू पीने से स्मरण शक्ति बढ़ती है ।सत्तू का स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्व है। पढ़ने में मन लगता है ।पेट ठंडा रहता है और पौरुष बढ़ाता है । सतुआन गर्मी के आ जाने की घोषणा करता है और बताता है कि अब मौसम तेजी से गर्म होगा, ऐसे में सतू ही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो तन मन को शीतलता दे पाएगा।
इस मौके पर गणेश ओझा,पुरण ओझा, सुधांशु त्रिवेदी नीरज पांडे अजित तिवारी, चन्द्रहास मिश्र, बब्लू जी ने भाग लिया